
समाज में हुआ बदलाव हमेशा व्यक्ति और उनके रहन सहन को प्रभावित किया है. नई बहस और नई सोच को सामने किया है. समाज की संरचना को को इस बदलाव से बार-बार चुनौती मिली है. इस बदलाव को को हजारों सालों से निम्न वर्ग स्वीकारता रहा है. पर अपना स्थान खोने के डर ने उच्च वर्ग को हमेशा ऐसे बदलाव को तिरछी नजर से देखा है. फिर चाहे वो राजशाही से से लोकतंत्र की ओर कूच हो या फिर समाज के निचले वर्ग से रोटी-बेटी का सम्बन्ध. आज के दौर की सामाजिक संरचना में भी जो ऊपर है चाहे वो भले ही नीचे से ही क्यों न आये हों वो नीचे वालो को हेय दृष्टि से देखते भी है और उसे बताने में भी संकोच नहीं करते हैं.
समाज का ये नजरिया कमोबेश आज भी कायम है मगर टेक्नोलॉजी के इस दौर में इसे चुनौती अच्छी-खासी मिल रही है. जो कभी उच्च वर्ग के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पते थे आज उनकी कही बातों को तर्क और विचारधारा के तराजू में तौल कर देख रहे हैं. इससे मिलने वाली चुनौती से वो वर्ग परेशान है या यूँ कहे आतंकित है. जो कभी सामने बैठने की जुर्रत नहीं कर सकते थे आज लोकतंत्र और समानता के कारण आँखे मिलाकर तीखे सवाल पूछ रहे है. इससे डरते हुए अभिजात्य वर्ग ने सवाल पूछने वाले ही नाम राझ दिया ट्रॉल्स. सवाल क्या है, उसकी गहराई क्या है, क्या सवाल तार्किक है, क्या उससे जनभावना जुडी हुई है, इन बातों पर विचार किये बगैर अगर आप पूछने वाले को अभिजात्य वर्ग के बीच या यूँ कहे की अपने दोस्तों के बीच हल्का करने का प्रयास करें तो आवाजें तो उठेंगी ही. इन बढती आवाजों को ही ट्रॉल्स की संज्ञा दी गयी है.